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बुकर टी० वाशिंगटन

२―जिस स्थान मे हम रहे उस स्थान के निवासियों की शारीरिक, मानसिक, नैतिक और आर्थिक उन्नति करने का यत्न करना ही सबसे बड़ी बात है।

३―सत्कार्य-प्रेरणा के अनुसार प्रयत्न करते समय किसी व्यक्ति, समाज या जाति की निन्दा, द्वेष और मत्सर न करना चाहिए। जो काम भ्रातृभाव, बन्धु-प्रेम और आत्मीयता से किया जाता है वही सफल और सर्वोपयोगी होता है।

४―किसी कार्य का यत्न करने मे आत्मविश्वास और स्वाधीनभाव को न भूल जाना चाहिए। यदि एक या दो प्रयत्न निष्फल हो जायँ तो भी हताश न होना चाहिए। अपनी भूलो की ओर ध्यान देकर विचारपूर्वक बार-बार यत्न करते रहना चाहिए। अन्त मे ईश्वर की कृपा से अवश्य ही सफ- लता होती है।

गुणों का उचित आदर

वाशिगटन का यह विश्वास है कि योग्यता अथवा श्रेष्ठता किसी भी वर्ण, रन और जाति के मनुष्य मे हो, वह छिप नहीं सकती। अन्त मे वह मनुष्य अवश्य ही विजयी होता है। गुणों की परीक्षा और चाह हुए बिना नहीं रहती। यह सर्वथा सच है―"गुणाः पूजास्थानं गुणिषु न च लिङ्ग न च वयः।" वाशिंगटन ने जो जातिसेवा-रूप परोपकार किया है वह यह समझकर किया है कि हमारा कार्य छोटा ही