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कर्नल आलकट

कुछ दिन बाद आलकट साहब को कर्नल का पद मिला और वे युद्ध-विभाग के स्पेशल कमिश्नर बनाये गये। इसके अनन्तर जहाज़ी महकमे के सर्वश्रेष्ठ अधिकारी ने अपने मह- कमे में उन्हें ले लिया। वहाँ उन्होंने अनेक सुधार किये और उस महकमे मे जितनी ख़राबियाँ थी सब दूर कर दीं। इनकी इम योग्यता पर इनका प्रधान अफ़सर इतना प्रसन्न हुआ कि उसने एक लम्बी सरटीफ़िकेट दी और उसमें इनके गुणो का सविस्तर गान किया।

मैडम ब्लेवस्की से कर्नल आलकट की भेंट अमेरिका ही में हुई। वहीं इन दोनों ने मिलकर थियासफ़िकल समाज की नीव डाली। उस समय कर्नल साहब ने गवर्नमेट की नौकरी से इम्तेफ़ा दे दिया था और विकालत करने लगे थे। विकालत में आपको अच्छी आमदनी होती थी। पर धार्मिक और ब्रह्मविद्या-विषयक बातों को उन्होंन रुपया पैदा करने के काम से अधिक महत्त्वपूर्ण समझा। अतएव सांसारिक झगड़ों से हाथ खीचकर, १८७५ ईसवी में, पर्वोक्त मैडम साहबा की सलाह से, आपने इस समाज की स्थापना की। आप ही इसके प्रधान अध्यक्ष नियत किये गये। इसके दो वर्ष बाद आपने भारतवर्ष के लिए प्रस्थान किया और यहाँ मदरास में थियासफ़िकल सोसायटी का मुख्य दफ्तर खोला।

यही आकर बम्बई में पहले पहल आप ही ने स्वदेशी चीजो की एक प्रदर्शिनी खोलने का उपक्रम किया और लोगों को