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विदेशी विद्वान्

स्वदेशी-वस्तु-व्यवहार की उत्तेजना दी। एनी बेसंट कहती हैं, कांग्रेस करने का ख़याल भी पहले पहल आप ही को हुआ था।

कर्नल साहब को बौद्ध धर्म से विशेष प्रेम था। आपने लङ्का में इस धर्म की उन्नति के लिए बहुत प्रयत्न किया। यह आप ही के प्रयत्न का फल है जो वहाँ इस समय ३ कालेज और २०३ स्कूल हैं और उनमे २५,८५६ विद्यार्थी पढ़ते हैं। जापान में भी कर्नल आलकट ने बौद्ध धर्म की बड़ी उन्नति की। अनेक व्याख्यान आपने दिये। वौद्ध धर्म के भिन्न-भिन्न सम्प्रदायों को आपने अपने व्याख्यानों के प्रभाव से एक कर दिया।

१८७८ ईसवी में कर्नल साहव भारतवर्ष मे आये और १८८२ में आपने अपने निज के रुपये से ज़मीन वगैरह लेकर मदरास मे थियासफ़िकल सोसायटी की इमारत बनवाई। यहाँ, १८९१ में, मैडम व्लेबस्की का शरीरपात हुआ। तब से इस सोसायटी का कार्य-सूत्र सर्वतोभाव से आप ही के हाथ रहा। आपने अपने उद्योग और अध्यवसाय से, ३१ वर्षों में, इस सोसायटी की कोई एक हज़ार शाखायें दुनिया भर में खोल दीं। इस समय कोई देश ऐसा नहीं जहाँ इस सोसा- यटी की शाखा न हो। आप पर और मैडम ब्लेबस्की पर अनेक लोगों ने अनेक प्रकार की तुहमतें लगाई; अनेक प्रकार से उनकी निन्दा की; अनेक अनुचित आक्षेप और आयात किये; पर उनकी बहुत कम परवा करके आप अपने सिद्धान्तों पर दृढ़ रहे और जिस काम को शुरू किया था उसे उसी