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डाक्टर जी॰ थीबो

के रजिस्टरार हो गये। पर फिर इसी प्रान्त को लौट आये और प्रयाग के म्योर-कालेज में अध्यापक हुए। तब से अन्त तक वे इसी कालेज में रहे। गफ़ साहब के पेनशन लेने पर ये म्योर-कालेज के अध्यक्ष हो गये।

थीबो साहब छोटे-छोटे कालेजों के ख़िलाफ़ हैं और थोड़ी उम्र में बड़ी-बड़ी परीक्षाओं को पास कर लेना भी आपको पसन्द नहीं। आपकी राय है कि अच्छे-अच्छे कालेजों में उपयुक्त उम्र के लड़कों को रखने ही से लाभ है। कच्ची उम्र में विद्या कच्ची रह जाती है और छोटे-छोटे कालेजों में पढ़ाई अच्छी नहीं होती।

अब आपको इलाहाबाद-विश्वविद्यालय के रजिस्टरार का पद मिला है। टेकूस्ट बुक कमिटी के मेम्बर भी आप पूर्ववत् बने रहेगे। इस कमिटी में शामिल रहकर थीबो साहब ने बहुत कुछ काम किया है। संस्कृत और हिन्दी की पुस्तकों के चुनाव में तो आपने जो काम किया है वह बहुत ही प्रशंस- नीय है। हिन्दी के प्रेमी शायद यह न जानते होगे कि थीबो साहब शुद्ध और परिमार्जित हिन्दी के कितने पक्षपाती हैं और जो लोग अफ़सरो की हाँ में हाँ मिलाकर हिन्दी को उर्दू बनाने की सिफ़ारिश करते हैं उनकी राय का उन्होंने कितना विरोध किया है। अभी बहुत दिन नहीं हुए, गवर्न- मेट ने हिन्दी-उर्दू की रीडरों के लिए इनाम की नोटिस दी थी। रीडरे जब बनकर तैयार हुई और एक विशेष कमिटी