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विदेशी विद्वान्


परन्तु तब भी अरबी-साहित्य मे केवल इने-गिने ग्रन्थ थे। इसके कई सौ वर्ष बाद तक उसकी यही दशा रही। इसमें सन्देह नहीं कि अरब की मरुमरीचिका ही मे इसलाम-धर्म का अभ्युपय हुआ था; परन्तु वहाँ उसने ज्ञान-गौरव-लाभ नही किया। सुप्रसिद्ध बगदाद राजधानी ही इसलाम-धर्म और अरबी साहित्य का गौरव-क्षेत्र हुई।

पश्चिमी देशों के साथ भारत का व्यापार प्राचीन काल मे बगदाद ही के रास्ते होता था। इसलिए इन देशों मे भारत- वासी बराबर आते-जाते थे। किसी समय बौद्ध धर्म-प्रचारकों ने एशियाखण्ड के इन सब पश्चिमी देशों में बौद्धमत का खुब प्रचार किया था। उनके द्वारा भारतीय साहित्य का प्रचार भी इन देशों में हो गया था। कुछ दिनों बाद इसलाम-धर्म ने आकर बौद्धधर्म को वहाँ से निकाल दिया और अपना राज्य जमा लिया। बौद्धधर्म तो वहाँ से विलुप्त हो गया, परन्तु बौद्ध लोग वहाँ से विलुप्त नहीं हुए। इसका अर्थ यह है कि जो लोग बौद्ध थे वही मुसलमान हो गये। मुसलमान-राज्य का केन्द्र पहले दमिश्क नगर में प्रतिष्ठित हुआ। परन्तु राज्य- संस्थापना की गड़बड़ के कारण वहाँ साहित्य-चर्चा उन्नति-लाभ न कर सकी। इसके बाद मुसलमान-साम्राज्य का केन्द्र- स्थान बगदाद हुप्रा। सच पूछिए तो यही मुसलमानों में ज्ञान-पिपासा उत्पन्न हुई। उस समय विपुल भारतीय साहित्य के सामने क्षुद्र अरबी-साहित्य को कोई न पूछता था। अतएव