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विदेशी विद्वान


सुप्रसिद्ध खलीफा हारूनुर्रशीद के समय में अरबी-साहित्य की खूब उन्नति हुई। प्राचीन बाल्हीक-राज्य के "नवविहार" नामक प्रसिद्ध बौद्ध मठ के 'परमक' नामक बौद्ध यति के वंश- धर उस समय हारूनुर्रशीद के मन्त्री थे। वे उस समय मुसलमान हो गये थे और 'वरमक' गोत्रीय कहलाते थे। उनकी चेष्टा से भारतीय गणित, ज्योतिष, आयुर्वेद, धनुर्वेद, दर्शन, विज्ञान और चिकित्सा-विद्या के सैकड़ों ग्रन्थ अरबी-भाषा मे अनुवादित किये गये। इसके साथ ही मिश्र और ग्रीस देश का साहित्य अरबी साहित्य को दिन-दिन उन्नत करने लगा।

इस तरह अलबरूनी के पैदा होने के पहले ही अरबी- साहित्य उन्नत हो चुका था। उसका पूर्ण रूप से अध्ययन करने के बाद अलबरूनी के मन मे खुद संस्कृत सीखने की इच्छा उत्पन्न हुई। भारतवर्ष मे निर्वासित होने पर उसकी यह इच्छा पूर्ण हुई। संस्कृत-ग्रन्थों का अरबी-अनुवाद अध्य- यन करते समय अलबरूनी भारतीय-साहित्य के केवल द्वार पर पहुँचा था। अब उसके भीतर प्रवेश के लिए उसका संस्कृता- नुराग प्रबल होने लगा। अलबरूनी की धारणा थी कि मूल संस्कृत-ग्रन्थ का माधुर्य्य अरबी-अनुवाद में रक्षित नहीं रहता। संस्कृत सीखने पर उसकी यह धारणा बद्ध-मूल हो गई। इस समय अलबरूनी एक मुसलमान साहित्य-प्रेमी के साथ अकसर वर्क-वितर्क किया करता था। उसका विचार था कि मूल संस्कृत- ग्रंथ अध्ययन करने के लिए परिश्रम करना व्यर्थ है; अरबी-