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अलबरूनी


साहित्य में जो अनुवाद मौजूद हैं वही यथेष्ट हैं। परन्तु अल- बरूनी का मत उसके विपरीत था। धीरे-धीरे दोनों में वाद- विवाद बढ़ गया। अतएव अलबरूनी ने अपने मत का महत्त्व स्थापन करने के लिए मूल संस्कृत-शास्त्रों के प्रमाण उद्धृत करके ‘इंडिका’ की रचना प्रारम्भ की।

‘इंडिका’ के पढ़ने से मालूम होता है कि उसकी रचना के पहले अलबरूनी ने कई संस्कृत-ग्रन्थों का अध्ययन किया था। उनमें से सांख्यदर्शन, योगदर्शन, गीता, विष्णुपुराण, मत्स्य- पुराण, वायुपुराण, आदित्यपुराण, पुलिशसिद्धान्त, ब्रह्मसिद्धान्त, वृहत्संहिता, पञ्चसिद्धान्तिका, करणसार, करणतिलक, भुवन- कोश और चरक विशेष उल्लेख योग्य हैं। इसके सिवा रामायण, महाभारत, मानवधर्मशास्त्र, छन्दः-शास्त्र और सामुद्रिक–शास्त्र- विषयक ग्रन्थ भी अलबरूनी ने पढ़े थे। क्योंकि इनका उल्लेख भी 'इंडिका' मे, जगह-जगह पर, पाया जाता है।

[ मई १९११

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