पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/१५३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

विद्यापति । १४५ • •www ५० दूती २८५ माधव धनि आयल कत भाति । प्रेम हेम परखाग्रोल कसोटिय भादव कुहु तिथि राति ॥ २ ॥ गगन गरज घन ताहे न गन मन कुलिस ने कर मुख बङ्का । तिमिर अञ्जन जलधारे धोय जनि ते उपजावति सङ्का ॥ ४ ॥ भागे भुजग सिरे करे अभिनय करे झॉपल फनि मनि दीपे । जानि सजल घन से देइ चुम्बन ते तुय मिलन समीपे ॥ ६ ॥ नारि रतन धनि नागर ब्रजमनि रस गुने पहिल हारे ।। गोविन्द चरणे मन कह कविरञ्जन सफल भेल अभिसारे ॥ ८ ॥



राधा २८६ चन्दा जुन उग आजु कि राती । पिया के लिखिए पठाउवि पानी ॥ १ ॥ साश्रोन सञो हमे करब पिरीती । जत अभिमत अभिसारक गनीं ॥ ॥ अथवा एहु बुझाशोब हसी । पिवि जनु उगिलह सितन पर ।।।। कोटि रतन जलधर तोहे लेह । आजुकि रअनि घनतमकए । - भनइ विद्यापति शुभ अभिसार । भेल जन करथि पर ... 18