पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/१६१

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विद्यापति ।

सहचरी । निसि निसिअर भम भीम भुअङ्गम जलधर बिजुरि उजोर । तरुन तिमिर निसि तइअो चललि जास | बड़ साख साहस तोर ॥ २ ॥ सुन्दर कोन पुरुष धन जे तौर हरल मन जसु लोभे चलु अभिसार ॥ ३ ॥ तर दुतर नरि से कइसे जएवह तरि आरति न करिय झाप ।। तोरा अछ पचसर ते तोहि नहि डर | मोर हृदय बरु कॉप ॥ ५ ॥ भनइ विद्यापति अरे बर जउवति साहस कहहि न जाए । अछय जुवति गति कमला देविपति मन वस अरजुन राए ॥ ७ ॥