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पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/२०७

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विद्यापति । १६३ छल चल नयान बयान भरि रोयत चरण पकडि गडि जाव।। हा हा से धनि हमे न हैरब सिंह भूपति रस गाव ॥१०॥ ठूती । ३७६ विरह बेयाकुल बकुल तरुतले पेवल नन्दकुमार रे । नील नीरज नयन सञो सखि ढरइ नीर अपार रे ॥२॥ पेखि मलयज पङ्क मृगमद तामरस घन सार रे । निज पानि पल्लव मुदि लोचन धरनि पडु असम्भार रे ॥४॥ वहइ मन्द सुगन्धि शीतल मन्द मलय समीर रे ।। जन प्रलय कालक प्रबल पावक दहई दून शरीर रे ॥६॥ अधिक वेपथु टुटि पडु खिति मसृन मुकुता माल रे । अनिल तरल तमाल तरुवर मुश्च सुमनस जाल रे ॥८॥ मान मनि तेज सुदति चलु जेहि राय रसिक सुजान रे ।। सुखद श्रुति अति सरस दण्डक सुकबि भनथि कण्ठहार रे ॥१०॥ - - ६ --- दूती । ३८० सुन सुन गुनमति राइ । तो विनु कुल कलाइ ॥२॥ किसलय शयन उपेखि । भूमि उपरे नख लेखि ॥४॥ तेज धनि असमय मान । काहुक तुहु से निदान ॥६॥ 35