पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/२७७

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विद्यापति । २५६ --०५०० ००००० r माधव अावे वुझलि तुय रीती । । ए वेरि वले चेतन भैलिहु पुनु न करव परतीती ॥४॥ वाट हेरि वर नागरि रहलि सून सङ्केत निसि जागि । जे नहि फले निरवाहए पारिअ से है करिअ को लागि ॥६॥ दूती । ५१५ ताके निंवदिय जे मतिमान । जलाह गुन फल के नहि जान ॥ २ ॥ तेरे बचने कएल परिछेद । कौआ भुह न भनिग्रए वेद ॥ ४ ॥ तोहे बहुवल्लभ हमहि अनानि । तकराहु कुलक धरम भेलि हानि ॥ ६ ॥ कएल गतागत तोहरा लागि । सहजहि रयनि गमाउने जागि ॥ ८ ॥ धन्ध वन्ध सकल भेल काज । मोहि आवे तुह्नि की काहनी लाज ॥१०॥ दूती वचन सवहि भेल सार । विद्यापति कह कवि कण्ठहार ॥१२॥ टूती । ५१६ | तह हुन लागल उचित सिनेह । हम अपमानि पठभोलह गेह ॥ २ ॥ हमरो मति अपये चलि गेलि । दुधक माछी दूती भैलि ॥ ४ ॥ माधव कि कहव इ भल भेला । हमर गतागत इ दुर गेला ॥ ६ ॥ पहिलहि वोललह मधुरिम वाणी । तोहहि सुचेतन तोहहि सयानी ॥ ८ ॥ भेला कोज चुकाओल रोसे । कहि कीबुझौवह अपनुकदोसे ॥१०॥