पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/२८

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विद्यापति ।

माधव । ४६. अलखिते हमें हेरि बिहसति बार जनि रयनि मैल चाँद उजौर ।। ३ ।। कुटिल कटाख लाट पडि गेल । मधुकर डम्बरे अम्वर देल ॥ ४ ॥ काहिक सुन्दरि के ताहि जान । आकुल कए गेल हमर पनि ॥ ६ ॥ लीला कमले भमर धरु वारि । चमक चललि गौरि चकित निहारि॥८॥ तें भेल वेकत पयोधर शोभ । कनय कमल हेरि काही न लोभ ॥१०॥ आध चुकायाले आध उदास । कुचकुम्भे कहि गेल अपनकास॥ १२॥ से सबेअमिलनिधि दए गेलि सन्देस । किछु नहि रखलह्नि रस परिसेस ।।१४ ।। भनइ विद्यापति दुहु मन जागु । विसम कुसुमशर काहुजनु लागु॥१६॥ (३) काट= सम्बन्ध । माधव । ५० अम्बर बिघटु अकामिक कामिनि करे कुच झोपु सुन्दा । कनक सम्भु सम अनुपम सुन्दर दुई पङ्कज दश चन्दा ॥ ३ ॥ कत रूप कहव बुझाई ।। मन मोर चञ्चल लोचन बिकले ओ अनइते जाई ॥ ४ ॥ आड़ बदन कए मधुर हास ए सुन्दरि रहु सिर लाई ।। अधा कमल कान्ति नहि पूरए हैरइत जुग बहि जाई ॥ ६ ॥ भनइ विद्यापति सुन वरजौवति पुहवी नव पचवाने । राजा सिवसिंह रूपनराएन लखिमा देवि रमाने ॥ ८ ॥ (१) विघटु= विघटित हुया, खुल गया। (२) कामिन जब हस्त द्वारा पयेधर आच्छादन कर ली, तर पर्याधर कनक शम्भु तुल्य, ६ | हुस्त कमल तुल्य, एच अङ्कलियों के नख दश चन्द्र तुल्य शैभित हुए। (४) औ ओं अनइते जाइ=मेरा मन और लाचन अनायत्त हुआ, अर्थात् मेरे अधीन नहीं रहा। (५) लाई नीचे करके। (६) अधा =उलटा। (७) पुष्टी = पुथियो ।नव पचाने-नूतनपञ्चवण, अर्थात् राजा शिवसिंह द्वितीयमदनतुल्य