पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/२९८

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विद्यापति ।

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२८० विद्यापति । भनहि विद्यापति दुहुक मुदित मन मधुकर लोभित केलि । असह सहति कत कोमल कामिनी जामिनी जीव दय गेलि ।। ६ ।। राधा । फुल एक फुलवारि लाल मुरारि । जतनइ पटोलनि सुवचन वारि ॥ ३ चौदिश बॉधलनि शलकि आरि । जीव अवलम्वन करु अवधारि ॥ ४ ॥ तथहुँ फुलल फुल अभिनव पेम । जसु मूल लय न लाखहु हेम ।। ६ अति अपरुव फुल परिनत भेल । दुइ जीव अछल एक भए गेल । पिशुन कीट नहि लागल ताहि । साहस फल देल विहि देल निरवाहि ॥१° विद्यापति कह सुन्दर सैह । करिय यतन फलमत हो जहं ।' राधा । ५५६ सखि हे से सब कहते लाज । जे करे रसिक राज ॥ २ ॥ आङ्गिना अग्रोल सेह । हम चलल गेह ॥ ४ ॥ अधरु चर और । फुयल कवरी मोर ॥ ६ ॥ टीट नागर चोर । पाओल हेम कटोर ॥८॥ धरिते धाोल ताय । तोडल नखक धाय ॥१०॥ चकोरे चपल चॉद । पड़ल प्रेमेर फॉद ॥१३ कवि विद्यापति । भान । पूरल दुहुक कामे ॥१४॥