पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/३१२

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विद्यापति ।

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३६० - =- = - = विद्यापति । सेद सलिल विन्दु पुरल वन इन्दु बजइते गद गद वानी ॥२॥ कि आरे कि कहब कौतुक आजे ।। पुलकित तनु सहि चरन चलए नाहि हरितहि हरलनि लाजे ॥४॥ हृदय हृदय दुए पहु निरदए भए | दिढ परिरम्भन देला । ससरु कसनि डोर हार टुटल मोर के जाने केहन मन भेला ॥६॥ जखने विहसि वधु हेरि वदन विधु कयल अधर मधु पाने ।। तखने भेलिहुँ सुधि कवि विद्यापति बुधि श्री शिवसिंह रस जाने ॥८॥ राधा । ५८० सॉझक वेरा जमुनाक तीरा कदम्बेरि वन तरु तरा ॥१॥ अङ्कमि कानरा कि कहब समरा | साझहि जूझल सखि कुसुमसरा ॥२॥ गोहि भेटल काहू । अनतए कहिनी कहह जनू ॥३॥