पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/३१६

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२६४ विद्यापति ।। wenn man SNYvema man

राधा । ५८६ सखि हे कि कहब किछु नहि फूरे । सपन कि परतेक कस्य न पारिय किय नियर किय दूरे ॥२॥ तडित लतातल जलद समारल ऑतर सुरसरि धारा । । तरल तिमिर शशि सूर गरासल चौदिश खसि पडु तारा ॥४॥ अम्वर खनाल धराधर उलटल धरणी डगमग डोले ।। खरतर वेग समीरन सञ्चरु चञ्चरिगण करु रोले ॥६॥ प्रणय पयोधि जले तन झॉपल ई नहि युग अवसाने । के विपरीत कथा पतियाएत कवि विद्यापति भाने ॥८॥ सखी । ५८७ उद्सल कुन्तल भारा । मुरुति सिंड्गार लखिम अवतारा ।। २ ॥ अतिशय प्रेम विकारा । कामिनि करतहि पुरुख वेहारा ॥ ४ ॥ डोलत मोतिम हारा । जामुन जल जैसे दुधक धारा ॥ ६ ॥ कडून किडनि वाजे । जय जय डिाडण्डम मदने समाजे ॥ ६ ॥ रसिक शिरोमनि कान । कविरजन ' रस | गान ॥१०॥ सखी । ५६८ केस कुसुम छिरिएल फूजि । ताराएँ तिमिर छाड़ि हलु ज ॥ हीरे पयोधर मनसिज प्राधि । सम्भु अधोगति धए समाधि