पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/३१८

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२६६ विद्यापति । सखी । ५६१ देख सखि रसिक युगल रस रङ्क । अम्वर विनहि किये घन दामिनीं रहत परस्पर सङ्ग ॥२॥ राधा वदन मधुर मधु माधव मुख चपक भरि रिझ । विनहि सरोवर कमल फुलल किये चन्द्र रसे रहु भिज ।।४।। उरज उतङ्क कुम्भ परिहरि उर राजत अद्भुत रीत । विनहि धरा किये कनक धराधर नमित जलद भरे भीत ।।६।। कुन्द वदन किये मदन निशित शेर विम्ब अधर पर लागे । दाडिम्व विनहि वीज दाडिम्ब फुल वेसाहत वल्लभ आगे ॥८॥ सखी। ५६ २ गौर देह सुधारस सुवदनि श्याम सुन्दर नाह रे । जलद उपर तडित सञ्चरु सरूप ऐसन आह रे ॥२॥ पीठि पर घन श्याम बेनी निरखि ऐसन भान रे । जॉन अजर हटिक पाति कर गहि लिखन लेखु पाँच बान रे ॥४॥ खन न थिर रहु सघन सञ्चरु मनिक मेखल राव रे।। मयन राय दोहाइ कह कह जघन रस , ॥ . रयनी वरु. अवसान मानिये केले नह। रसिक यदुपति रमणि राधा सिंह भूपति