पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/३३०

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३१२ विद्यापति । 13:07, 19 February 2019 (UTC)13:07, 19 February 2019 (UTC)13:07, 19 February 2019 (UTC)13:07, 19 February 2019 (UTC)13:07, 19 February 2019 (UTC)नीलम (talk) 13:07, 19 February 2019 (UTC) नीलम (talk) 13:07, 19 February 2019 (UTC) 13:07, 19 February 2019 (UTC)13:07, 19 February 2019 (UTC)13:07, 19 February 2019 (UTC)13:07, 19 February 2019 (UTC)13:07, 19 February 2019 (UTC)~~ नीलम (talk) | तव जे गोपसि कि कहव तोय । वजर निवारन करतल दोय ॥ ६ ॥ पाओल हे सखि मौनके ओर । पिया परदश चलवे मोहे छीरे ॥ ८॥ - समय समापन कि फल आर । पेमक समूचित अवहु विचार ॥१०॥ राधा । ६ २५ हरि कि मथुरापुर गेल । आजु गोकुल शून भेल ॥ २ ॥ रौदति पिज्जर शुके । धेनु धावइ माथुर मुखे ॥ ४ ॥ अब सोइ जमुना कूले । गोप गोपी नहि वुले ॥ ६ ॥ सायरे तेजव परान । आन जन्मे होयच कान ॥ ८॥ कानु होयव जव राधा । तव जानव विरहक वाधा ॥१०॥ विद्यापति कहु नीत । अव रोदन होय समुचीत ।।१२।। राधा । । ६ २६ अव मथुरापुर माधव गेल । गोकुल माणिक के हरि लेल ॥ २ ॥ गोकुले उछलल करूणाक रोल । नयनक जले देख वय हिलोल ॥ ४ ॥ शून भैल मन्दिर शून भैल नगरी । शून भेल दश दिशशून भैल सगरी ॥ ६ ॥ कैसे हम जाओव जमुना तीर । कैसे निहारव कुञ्ज कुटीर ॥८॥ सहचरि सञो जहॉकयल फुलवारि। कैसे जीयव ताहि निहारि ॥१०॥ विद्यापति कहे कर अवधान । कौतुके छापि तेहि रहु कान ॥१२ ।।