पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/३३२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

। ३१४ विद्यापति । अरेरे पथिक भइआ समाद लए जइह जाहि देस बस मोर नाह । हमर से दुख सुख तह्नि पिया काहिह सुन्दर समाइलि वाह् ॥६॥ भनई विद्यापति अरेरे जुवति अवे चिते करह उछाह । राजा सिवसिंह रूपनराएन लखि देवि वर नाह ॥११॥ राधा । ६ २६ हमर नागर रहल दरदेश । केऊ नहि कह सखि कुशल सन्देश ॥२॥ ए सखि काहि करव अपतोस । हमर अभागि पिया नहि दोस ॥४॥ पिया विसरल सखि पुरूव पिरीति। जखन कपाल वाम सब विपरीति ॥६॥ मरमक वेदन मरमहि जान । आनक दुख आन नहि जान ॥८॥ भनइ विद्यापति न पुरल काम । कि कृति नागरि जाहि विधि वाम ॥१०॥ राधा । ६३० पिया छल चन्द हम छल देहा । के पापि तोडत ऐसन नेहा ॥३॥ पिया छल खलन हम छल खञ्जनि । के बॉधल पिया मरम नहि जानि ॥४॥ पिया छत साम तरु हम छत लता । के भाङ्गल तरू न बुझि वेवथा ॥६॥ 'पिया छत कामकलाहम छल कामिनि। पिया विनुनहि जाए दिन यामिनि ॥६॥