पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/३४५

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विद्यापति । -

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राधा । ६४५ पहिल पिरीति परान ऑतर तखने अइसन रीति । से आवे कबहु हरि न हेरथि भेलि निम सनि तीति ॥२॥ साजनि जिवथु सए पचास । सहसे रमनि रयनि खेपथु मेराहु तन्हिक आस ॥४॥ कतने जतने गऊरि अराधिअ मागिअ स्वामि सोहाग । तथुहु अपन करम भुजिय जइसन जकर भाग ॥६॥ समय गेले मेघे वरीसव की ते जलधार । । सित समापले वसन पाइअ ते दुहु की उपकार ॥८॥ रयनि गेले दीपे निवोधिअ भोजन दिवस अन्त । जउवन गेले जुवति पिरिति की फल पाओत कन्त ॥१०॥ धन अछइते जे नहि भोगए ता मने हो पचताव । जेउवन जीवन वड निरोपन गेले पलटि न आव ॥१२॥ भन विद्यापति सुनह जउवति समय बुझ सयान । राजा सिवसिंह रूप नरायन लखिम देवि रमान ॥१४॥ राधा । लोचन धाए फैधाएल हरि नहि आएल रे । शिव शिव जिवओ न जाए और व जिवओ न जाए आसे अरुफाएल रे ॥२॥ 11