पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/३५

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विद्यापति । राधा की अनुराग । राधा । ऐ सखि कि पैखल एक अपरूप । शुनइते मानव सपन सरूप ॥ ३ ॥ | कमल युगल पर चॉदक माल । तापर उपजल तरुण तमाल ।। ४ ॥ तापरवेढल बिजुरि लता । कालिन्द तीर धीर चाले जाता ॥ ६ ॥ शाखा शिखर सुधाकर पॉति । ताहि नव पल्लव अरुणक भॉति ॥ ६॥ विमल बिम्बफल युगल विकास । तीपर कीर थीर करु बास ॥१०॥ तोपर चञ्चल खञ्जन जोड़ । तीपर सापिनि झॉपल मोड़ ॥१२॥ ए सखि रङ्गिनि कहल निसान । पुन हेरइते हमे हरल गेयान ॥१४॥ भनइ विद्यापति इह रस भान । सुपुरुष मरम तुहु भल जान ॥१६॥ (३) कमल युगल (चरण) पर चन्द्रमाला (नखराजि), उस पर तरुण तमाल (ऊरु )। (५) विजुरिस्ता =पीत घडा। (७) शाखा शिखरमै ( हस्तागुलि) चन्द्रपॉति (भक्षावली)। नवपल्लव-फरतल। (९) विमल चिन्बफल= ओष्ठाधर । (१०) कीर=शुकपक्षी, नासी । (११)पशुनजेड़=नयनयुगल। (१२)सापिनी= चेयी । (१३) निसान=चिन्ह, सकेत। राधा । कि कहव हे सखि कानुक रूप । के पतियायब सपन सरूप ॥ २ ॥ अभिनव जलधर सुन्दर देह । पीत बसन परा सौदामिनि रेह ॥ ४ ॥ सामर झामर कुटिलहि केश । काजरे साजल मदन सुवेश ॥ ६ ॥ जातक केतक कुसुम सुबास । फुलशेर मनमथ तेजल तरास ॥ ६ ॥ विद्यापति कह कि कहव आर । शुन करल विहि मदन भंडार ॥ १० ॥ ( ४ ) परा=परिहित ।