पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/३५५

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विद्यापति । www राधा ।

६ ६३ मधुपुर मोहन गेल रे मोरा विहरत छाति । गोपी सकल विसरलनि रे जत छिल अहिवाती ॥ २ ॥ शतलि छलहुँ अपने गृह रे निन्दइ गेलउ सपनाइ । करसौं छुटल परशमणि रे कोन गेज अपनाई ॥ ४ ॥ कत कहवो कत सुमिरव रे हम भरिय गराणी। आनक धन स धनवन्ती र कुवजा भैलि राणी ॥ ६ ॥ गोकुल चान चकोरल रे चोरी गेल चन्दा । विछुड़ि चलाल दुहु जोड़ी रे जीव दइ गेल धन्धा ॥ ८ ॥ काक भाष निज भोपह रे पहु प्रति मोरा । क्षीरि खाड़ भोजन देव रे भरि कनक कटोरा ॥ २० ॥ भनहि विद्यापति गाओल रे धैरज धर नारी । । गोकुल होयत शोहोओन रे फेरि मिलत मुरारि ॥ २२ ॥ राधा । प्रथम समागम भैत रे । हठन रयनी विती गेल रे ॥ २ ॥ नव तनु नवे अनुराग रे । विन परिचय रस मागरे ॥ ४ ॥