पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/३८

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विद्यापति । ~ 08:02, 14 February 2019 (UTC)~~ • • •www५००० • •••••••••••••••••• माधव । दए गेलि सुन्दरि दए गेली रे दए गेलि दुइ दिठे मेरा । पुनु मनकर ततहि जाइअ देखि दोसरि बेरा ॥ २ ॥ सार चुनि चुनि हार जे गॉथल केवल तारा जोती । अधर रूप अनुपम सुन्दर चान्दे परीहाल मोती ॥ ४ ॥ भुमर मधु पिवि पिव मातल शिशिरे भीजलि पाखी । अलपे काजरे नयन ऑजल ननुमि देखिय ऑखी ॥ ६ ॥ कते जतने दृती पठाओल आनय गुया यान । सगरे रजनी वइसि गमाओल हृदय तसु पखान ॥८॥ भन विद्यापति सुनह नागर ओ नहि ओ रस जान । राजा शिवसिंह रूपनरायन लखिमा देवि रमान ॥ १० ॥ (२) मेरा= मिलन । (६) ऑजल=अजित । नुनुमि= कमल । (८) आओ नहि औ रस जान—वह (राधा) प्रेमरस नहीं जानती है। माधव । ५५ जहाँ जहाँ पद युग धरई । तेंहि तेहि सरोरुह भरइ ॥ २ ॥ जहाँ जहाँ झलकत अङ्ग । तेहि तेहि विजुरि तरङ्ग : ॥ ४ ॥ की हेरल अपरुव गोरि । पैठल हिय माहा मोरि ॥ ६ ॥ जहाँ जहाँ नयन विकाश । तेहि तेहि कमल परकाश ॥ ८ ॥ जहाँ लहु हास सञ्चार । तेंहि तेहि अमिय बिकार ।। १० ।। जहाँ जहाँ कुटिल कटाख । हँहि तेहि मदन शर लाख ॥ १२ ॥ हेरइते से धनि थोर । अब तिन भुवन अगर ॥ १४ ॥ पुन किये दरशन पाव । अव मोहे इह दुख जाव ॥ १६ ॥ विद्यापति कह जानि । तुय गुणे देयव आनि ॥ १८॥ (१०) अमिय धिकार=अमृत विकीर्ण । (१५) अध उसकी मूर्ती तीन भूपन की अगरती है। अर्थात् सर्वत्र उसकी मूर्सि देता। =