पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/३८७

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३७१ ••••••• विद्यापति । • • • » »»»» राधा । कत दिने घुचव इह हाहाकार । कत दिने घुचव गरुय दुखभार ॥ २ ॥ कत दिने चोद कुमुदे हव मेलि । कृत दिने भ्रमरा कमले करु केलि ॥ ४ ॥ कत दिने पिया मोरे पुछव बात । कबहुँ पयोधरे देव हात ॥ ६ ॥ कत दिने करे धार वइसाव कोर । कन दिन मनोरथ पुरव मार ॥ ८ ॥ विद्यापति कह सुन वरनारि । भागउ सकले दुख मिलव मुरारि ॥ १० ॥ सखी । ७३६ ए सखि काहे कहसि अनुयोगे । कानु से अवहि करवि प्रेमभोगे ॥ २ ॥ कोरे लेयव सखि तुहुँक पिया | हम चलल तुहुँ थिर कर हिंया ॥ ४ ॥ एत कहि कानु पाशे मिलल से सखी । प्रेमक रीत कहले सब दुखी ॥ ६ ॥ सुनतहि माधव मिलल धनि पास । विद्यापति कह अधिक उलास ॥ ८ ॥ सखी । चानन भेल विषम सर रे भूषन भेल भारी । सपनहुँ नहि हरि हरि आयल रे गोकुल गिरिधारी ।।२।।