पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/४०२

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३८२' विद्यापति । सरसहि मलयज पङ्कहि पङ्कज परशे मानय जनि आगी। ' कवहि धरणी शयने तनु चमकित हदि माहा मनमय जागी ॥६॥ मन्द मलयानिल विष सम मानइ मुरछइ पिककुल रावे। मालती माल परशे तनु कम्पित भूपति कह इह भावे ॥८॥ दूती । v७६० नयन नोर धर वाहर पीछर सवहु सखी दिठि नारे । पिछरि पिछरि खस तैओ सुमुखि धस ।। , मिलन आसे मन तेरे ॥२॥ कि होइति हुनि के जाने । हमर वचन मन धरिय सुजन जन | करिय भवन परथाने ॥४॥ एत दिन जे धनि । तोहर नाम सुनि पुलके निवेद पराने । खने खने सुवदनि तथिहु सिथिल जनि " नोर भासय अनुमाने ॥६॥ , . मने मने बुझिकहु, तावे चलिय पहु