पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/४०५

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, विद्यापति । । ३८५ दूती । । .. ... "७६५ - .... माधव कठिन हृदय परवासी । तुय पेअसि, मोयें देखलि वराकिनि अवहु पलटि घर जासी ॥२॥ हिमकर हेरि अवनत कर आनन करु करुना पथ हेरी ।। नयन काजर लए लिखए विधुन्तुद भए रह ताहेर सेरी ॥४॥ - दखिन पवन वह् से कइसे जुवति सह कर कवलित तसु अङ्गे । गेल परान आस दए राखय दस नखे लिखए भुअङ्गे ॥६॥ मीनकेतन भए शिव शिव शिव कए धरनि लोटावए देहा। करे रे कमल लए कुच सिरिफल दुए शिव पूजए निज देहा ॥८॥ परभृतके डरे पास लए करे वाएस निकट पुकारे ।। | राजा सिवसिंह रूपनरायन करथु विरह उपचारे ॥१०॥ |- - - दूती । । |- - ७६ ६ । नव किसलअ सयन सुतलि न वुझ दिवस राती । चान्द सुरज विसेख न जानए चान्दने मानए साती ।।२।। , विरह अनल मने अनुभव परके कहए न जाइ । - १. दिवसे दिवसे खिनी वाली चन्द अवथाने जाइ ॥४॥ • माधव रमनि पाउलि ,मोहे ।। - । । । । । । । आज धरि मोजे आसे जिआउलि ओतए जानह तोहे ॥६॥ । 43