पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/४१८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

४,०० विद्यापति । । । । । माधव । । । । । । | ७६० ,, ' । तिल एक शयन ओत जिउ न सह न रहु दुहु तनु भीन । माझे पुलक गिरि अन्तर मानिय ऐसन रहु निशि दीन ||२॥ सजनि कोन पर जीयव कान । राही रहल दूर हम मथुरापुर एतद् सहय परान'(४॥ " ऐसन नगर ऐसे नव नागरि ऐसन सम्पद मौर। राधा विनु सब बाधा मानिय नयन न तेजय नोर ॥६॥ सोइ जमुना जेल सोइ रमनिगण सुनइते चमकितचीत। कह कविशेखर अनुभवि जानलॉ बड़क बड़इ पिरीत ॥८॥


----

माधव । ७६१ रामा हे सपथ करहु तोर ।। से जे गुनवति गुन गनि गनि न जाने कि गति मोर ॥२॥ से संव सुमरि दुई मदन हृदय लागल धन्ध ।' ताहि विनु हम जीवन मानिय मरन अधिक मन्द ।।४।। सगर रजनि रोइ गमाओल सघन तेज निसास। नयने नयने पुनु कि मिलव पुनु कि पुरव आस ॥६॥