पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/४२२

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विद्यापति ।, अरे कुसुमित कानन कोकिल साद। मुनिहुँक मानस उपजु विसाद ॥ ४ ॥ आयल उनमद समय वसन्त । दारुन ,मदनः निकारुन कन्त ॥ ६ ॥ अति मत मधुकर रव कर मालती मधु सञ्चिते । समय कन्त उदन्त नहि किछु हसहि विधिवस वञ्चिते ॥८॥ वञ्चित नागर सेह संसार । एहि रितु पति स न कर विहार ॥१०॥ अति हार भार मनोद मारय । चन्द रवि सखि भानए । पुरुब पाप सन्ताप जतहो मन मनोभव जानए ॥१२॥ जारय मनसिज मार शर साधि चानने देह चौगुन हो धाधि ॥१४॥ सवे धाधि आधि वेधि जाइत करिय धैरज कामिनी ! - सुपह, मन्दिर तोरित आयात सुफले जाइत-जामिनी १११६ । जामिनि सुप्फले जाइत अवसान । धैरज धरु विद्यापति भान ॥१८॥ राधा । ७६४ आजे तिमिर दह दीस छड़ला । आजै दिधर भए दिवस बढ़ला ॥ २ ॥ आजे अकथ भेल परिजन कथा । आरति न रहए उचित वेथा ॥ ४ }} ऐ सखि ए साख फललि सुवेला । निअर अाएल पिर लोचन मेला ॥ ६ ॥ विरहे दगध मन कत दुर धौला । मागल मनोरथ कौने साख पोला।। ८॥ कति खन धरव जाइते जिवराखि । आसा बाँध पड़ल मन साखि ॥१०॥ . ॥ भनई विद्यापति सुन सजनी । चालभु सुन भेल' महधि रजनी ॥१२॥