पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/४४०

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विद्यापति । से तनु परिमले भरल दिगन्त । अनुभवि मुरुछि पड़लःरतिकन्त ॥ ६ ॥ भनइ विद्यापति कुमुदिनि इन्दु । उछलल सखिगन अनिन्द सिन्धु ॥ ८ ॥ सखी । । ८२२ दुहुक दुलह दुहु दरशन भेल । विरह जनित दुख सब दूरे गेल ॥ २ ॥ करे धार वैसाओल विचित्र आसने । रमय रतन श्याम रमणी रतने ॥ ४ ॥ बहुविध विलसय बहुविधि रङ्ग । कमले मधुप जनि पाओल सङ्ग ।। ६ ।। । नयाने नयान दुहाँर वयाने वयान । दुहु गुणे दुहु गुण दुहु जने गान ॥ ८॥ !, भनइ विद्यापति नागरी भोर । त्रिभुवनविजयी नागर चौर, ॥१०॥ सखी । । । । ।। ८२३ , १ ।। मदन मदालसे श्याम विभोर । शशिमुखि हँसि हँसि करु कोर ॥ २ ॥ नयन ठुलाठुलि लहु लहु होस । अङ्ग हेलाहेलि गद गद् भास ॥ ४ ॥ रसवति नारि रसिकवर कान । रहि रहि चुम्वइ नाह वयान ॥ ६ ॥ दुहु तनु मातल दुहु शर हान । विद्यापति करु से रस गान ।। ६ ।।