पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/४४१

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विद्यापति । ४१७ - - --**

राधा । ८२४ चिरदिने से विहि भेल अनुकूल रे । दुहु मुख हेरइते दुहु से आकुल रे ॥ २ ॥ वाहु पसारिया दुहाँ दुहाँ धरु रे । दुहु अधरामृते दुहु मुख भरु रे ॥ ४ ॥ दुहु तनु कॉपइ मदन उछल रे । कि कि कि करि किङ्किणीरुचल रे ॥ ६ ॥ जातर्हि स्मित नव वदन मिलल रे । दुहु पुलकावलि ते लहु लहु रे ।। ८ ।। रसे मातल दुहु वसन खसल रे । विद्यापति कह रससिन्धु उछलिल रे ॥१०॥ राधा । ८२५ | आर दूरदेशे हम पिया न पठाओ । ऑचर भरिया जदि महानिधि पाओ ॥ २ ॥ शीतेर ओड्न पिया गिरिपेर वा । वरिखेर छत्र पिया दरियार ना ।। ४ ।। निधन वलिया पियारन कलें जतन । एवै हम जानलु पिया बड़े धन ॥ ६ ॥ भनये विद्यापति सुन वरनारि । नागर सङ्गे करु रस परिहार ॥ ८ ॥ सखी । ८२६ दुहुँ दुहाँ निरखइ नयनक कोने । दुहुँ हिय जर जर मनमथ वाने ॥ २ ॥ 53