पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/४५२

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४२६ । विद्यापति । हरगौरी पदावली । विदिता देवी विदिता हो अविरलकेस सोहन्ती ।। एकानेक सहसको धारािन जरि रङ्गा पुरनन्ती ॥२॥ कज्जल रुप तुअ काली कहिओ उज्ज्वल रुप तुअ वानी । रविमण्डले परचण्डा कहिए गड़ा कहिए पानी ॥४॥ ब्रह्माघर ब्रह्मानी कहिए हर घर कहिए गौरी ।। नारायन घर कमला कहिए के जान उतपति तोरी ।।६।। विद्यापति कविवर एहो गाग्रोल जाचक जन के गती । हासिनि देइ पति गरुडनरायन देवासंह नरपती ॥८॥ --- -


- जय जय भैरवि असुर भयाउनि पशुपति भाविनि माया । सहज सुमति चर दिअग्रो गोसाउनि अनुगति गति तुअ पाया ॥२॥ वासर रैनि शवासन शोभित चरण चन्द्रमणि चूड़ा। ' । ' कतोक दैत्य'मारि मुह मेलल कतओ उगिल कैल कूड़ा ॥४॥ सामर वरन'नयन'अनुरञ्जित जलद जोग फुल कोका । - कट कट विकट ओठ फुट पॉडरि लिधुर फेन उठ फोका ॥६॥