पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/४८५

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४५१ विद्यापति । विरहि चित्र विभेद लक्षण चूत मुकुल भयङ्करे । पाटला मधुलव्ध मधुकर निकर नाद मनोहरे ॥८॥ चन्द्र चन्दन कुङ्कमा गुरुहार कुन्तल मण्डिता ।। हार भार विलास कौशल निधुवन क्षण पण्डिता ॥१०॥ कुलिशकठिना कठिन मानस सावसीदति सुन्दरी । दुबैलात दुराशया वरवेदि मध्य कृशोदरी ।।१२।। गच्छ गच्छ वदन्ति किन्तव सानुजीवति कामिनी । पद्ममिव मधुपावली नवे शस्त्र मिवा मधुयामिनी ॥१४॥ अन्यया सा शरणमेष्यति विरहि खेद निवारणम् । देवसिंह नरेन्द्र नन्दन सिड मिड मिवारणम् ॥१६॥ भूमिपति शिवासिंह देवमनन्त विक्रम साहस । सुकवि विद्यापति निवेदित मुदित काम कलारस ॥१८॥ माइ हे वालम्भु अवहु न आव । जाहि देस सखि न मनोमव भाव ॥ २ ॥ तरुण शाल रसाल कानन कुञ्ज कुडमल पुष्पिते । पद्म पाटलि परम परिमल वकुल सड्कुल विकाशते ॥ ४ ॥ अरुण किसलय राग मुद्रित मञ्जरी भर लम्विते ।