पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/४९९

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विद्यापति । नायिका । वह वैसह पिव लह पानि । जे ते खोजबह से देव आनि ॥ ६॥ ससुर भैसुर भोर गेलाह विदेस | स्वामिनाथ गेल छथि तनिक उदेस ।।१०। सासुघर आह्वरि नैन नहि सूझ । बालक मोर वचन नहि बुझ ।। भनहि विद्यापति अपरूप नेह । येहन विरह हो तेहन सिनेह ॥ १२ ॥ पिया मोर वालक हम तरुणी । कोन तप चुकलौह भेलैह जननी ॥ २ ॥ पहिर लेल सखि एक दछिनक चीर। पिया के देखैति मोर दगध शरीर ॥ ४ ॥ पिंया लेलि गोदकें चललि बजार । हटियाक लोक पुछे के लागु तोहार ॥ ६ ॥ नहि मोर देओर कि नहि छोट भाइ। पुरव लिखल छल स्वामी हमार ॥ ८ ॥ बाट रेचटोहियाकितही मोर भाई । हमरो समाद नैहर लेने जाहु ॥१०॥ कहिहुन वा किनय धेनु गाई } दुधवा पिलाय पोसत जमाइ ॥१३॥ नहि मोराटका अछि नहि धेनु गाइ।कओनइ विधि पोसव बालक जमाइ॥१४॥ भनइ विद्यापति सुनु व्रज नारी । धैरज धय रहु मिलत मुरारी ॥१६॥ ' मेरा हिरे अङ्गना पाकड़ी सुनु चालहिआ। पटेवा आउग्र वास परम हरि चालहि ॥ २ ॥