पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/५०८

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।, ४७३ विद्यापति । 15:11, 15 February 2019 (UTC)15:11, 15 February 2019 (UTC)नीलम (talk) 15:11, 15 February 2019 (UTC)• • •-~~-~साए साए जाइते देखील मग । । । । । । जिन ए, आइलि, जग, विवुधाधिप पुर गोरी ॥३॥ धटज असन सुत ताहेरि तइसन मुख, चञ्चल नयन चकोराः । हेरितहि सुन्दरि हरि जनि लए गेलि हररिपुवाहन मोरा ।।५।। उदधितनय सुत सिन्दुरे लोटाएल हासे देखालि रकॉति ।। खटपदवाहन कोष वइसाओल विहिलिहु सिखरक पॉती ॥७॥ रविसुत तनअ दुइए गेलि सुन्दरि विद्यापति कवि भाने । राजा शिवसिंह रूपनराअन लखिमा देवि रमाने ॥६॥ | १४ हरि रिपु रिपु सुअ अरि भूषन ता भेअन अछ ठामे ।। पॉचवदन अरि वाहन तो प्रभु ता प्रभु लेइ अछ नामे ॥२॥ माधव कत परवोधलि रामा ।। सुरभि तनय पति भूषन सिरोमनि रहत जनम भरि ठामा, ॥४॥ कत दिन राखति आसे । शङ्कर वान वेद गुनि खाइति यदि न आओव तोहे° पासे ।।६।। सुरतनया सुत दए परवोधलि वाढ़ति कओन बड़ाइ । अम्बर सेख लेखि कए छाड़ति विहि हलु छझगर छडाइ ॥८॥ भनइ विद्यापति सुन वर जउवति तेहिं अछ जीवन अधारे । शिवसिंह रूपनराएन एकादस अवतारे ॥१०॥