पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/६८

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६२ विद्यापति ।। माधव । ११६ जनि हुतवहे हवि आनि मेराओल ता सम भेल विकार । दुअो नयन तोर विषम मदन शर शालय हृदय हमार ॥ २ ॥ हरि हरि कॉलागि सुमुख विहुसि हसि हेरह जीवन परल सन्देह ॥ ३ ॥ पीन पयोधर अपरुव सुन्दर उपर मोतिम हार।। जनि कनकाचल उपर विमल जल दुइ वह सुरसरि धार ॥ ५ ॥ भनइ विद्यापति सुन वर नागर सबहु होयत परकार । राजा सिवसिंह रूपनरायन लखिमा कन्त उदार ॥ ७ ॥ -::--- माधव । | १२० सुन्दरि गरुआ तोर बिबेक । विनु परिचय पेमक कुर पल्लव मेल अनेक ॥ २ ॥ कखने होएत सुफल दिवस वदन देखव तोर । वहुल दिवस भुखल भमर पिउत चॉद चकोर ॥ ४ ॥ भन विद्यापति सुन रमापति सकल गुन निधान ।। चिरे जिवे जिवो राए दामोदर सा सए अवधान ॥ ६ ॥


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