पृष्ठ:विद्यापति ठाकुर की पद्यावली.djvu/७५

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विद्यापति । ६६ AAAA AAN

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ठूतीः । १३३ तोहर साजनि पहिल पसार । हमरे बचने करिअ बेवहार ॥ २ ॥ अमिअक सागर अधरक पास । पोले नागर करय गरास ॥ ४ ॥ लहु लहु कहिनी कहब बुझाए । पिउत कुगयो गोमुख लाए ॥ ६ ॥ पहिल पढ्शक भला के हाथ । ते उपहास नहि गोपी साथ ॥ ६ ॥ मन्दा काज मन्दे कर रोस । मल पओलहि अलपहि कर तोस ॥ १० ॥ (६) गमार गउ के जैसा गुंह लगा के पीता है। (७) पदक=चोहनी । राधा । १३४ परिहर ए सखि तोहे परणाम। हम नहि जाएब से पिया ठाम ॥ २ ॥ वचन चातुरि हम किछु नहि जान । इङ्गितनचुझियन जानिय मान ॥ ४ ॥ सहचर मिल बनायत बेश । बॉधए न जानिय अपन केश ॥ ६ ॥ कभु नहि सुनिय सुरतक बात । कैसने मिलव माधव साथ ॥ ६ ॥ से बर नागर रसिक सुजान । हम अवला अति अलप गेयान ॥ १० ॥ विद्यापति कह कि बोलब तोय । अाजुक मिलन समुचित होय ॥ १२ ॥