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विनय-पत्रिका
कटितट रटति चार किकिनि-रव, अनुपम, वरनि न जाई॥
हम जलज कल कलित मध्य जनु, मधुकर मुखर नुहाई ॥५॥
उर विसाल भृगुचरन चारु अति, सूचत कोमलताई।
ककन चार विविध भूषन विधि, रचि निज कर मन लाई ॥६॥
गज-मनिमाल बीच भ्राजत कहि जाति न पदक निकाई।
जनु उडुगन-मंगल वारिदपर, नवग्रह रची अथाई ॥७॥
भुजग-भोग-भुजदंड कंज दर चक्र गदा पनि आई।
सोभासीव ग्रीव, चिवुकाघर, वदन अमित छवि छाई ॥ ८॥
कुलिस, कुंद-कुडमल, दामिनि-दुति, दसनन देखि लजाई।
'नासा-नयन कपोल, ललित श्रुति कुंडल भ्रू मोहि भाई ॥ ९ ॥
कुचित कर सिर मुकुट, भालपर, तिलक कहाँ समुझाई।
अलप तड़ित जुग रेख इंदु मह रहि तजि चंचलताई ॥१०॥
निरमल पीत दुकूल अनूपम, उपमा हिय न समाई।
बहु मनिजुत गिरि नील सिखरपर कनक-बसन रुचिराई ॥११॥
दच्छ माग अनुराग-सहित इंदिरा अधिक ललिताई।
हेमलता जनु तर तमाल दिग, नील निचोल ओढ़ाई ॥१२॥
सत सारदा सेष श्रति मिलिक, सोभा कहि न सिराई ।
तुलसिदास मतिमंद द्वंदरत कहै कौन विधि गाई ॥१३॥
____भावार्थ-इस शरीरका यही बड़ा भारी फल और इतनी ही
महिमा है कि नेत्र तप्त होकर श्रीविन्दुमाधवकी नखसे शिखतक
शोभा देखें ॥१॥ जिनके निर्मल, किशोर ( सोलह वर्षके), पुष्ट
और सुन्दर श्याम शरीरकी शोभा असीम है । ऐसा जान पड़ता है
माना नील कमल, (श्याम ) मेघ, तमाल और नीलम मणिने इन्हीके
शरीरसे शोभा प्राप्त की है।.२॥ जिनके कोमल चरणोमें सुन्दर
पृष्ठ:विनय पत्रिका.djvu/१२२
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