पृष्ठ:विनय पत्रिका.djvu/१२७

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- विनय-पत्रिका अभिमान-सिंधु फुम्भज उतार | मुग्रंजन, भंजन भूमिभार in रागादि-सर्पगन-पनगारि पिंटप-नाग-मृगपति, मुगरि॥६ भव-जलधि-पोत चरनारविंट । जानकी-ग्वन आनं: ॥७॥ हनुमंत-प्रेम-यापी-मराल निकाम कामधुक गोदयाला त्रैलोक-तिलक, गुनगहन राम । काह तुलसिदास रिश्राम याम॥९॥ भावार्थ-में करणानियान श्रीरघुनायजीको बन्दना करता है। जिससे मेरा सासारिक भेद ज्ञान र जाय ॥ १॥ श्रीरामजी रघुवंशरसी कुमुहको चन्द्रमाके समान प्रफुल्लिन करनेवाले नमा और शिम जिनके चरणकमलोंकी से किया करते ॥ २॥ जो अपने भक्तोंके हृदय कमल में भमरकी भाँति निवास करते हैं। जिनके शरीरका लावण्य असत्य कामदेवोंके समान है॥३॥ जो बड़े प्रबल मोहरूपी अन्धकारके नाश करनेके लिये सूर्य और अज्ञानरूपी गहन बनके भस्म करनेके लिये अग्निरूप है ॥४॥ जो अभिमानरूपी समुद्रके सोखनेके लिये उदार अगस्त्य है और देवताओंको सुख देनेवाले तया ( देत्योंका दलनकर ) पृथ्वीका भार उतारने वाले हैं ॥ ५॥ जो राग-द्वेषादि सपोंके भक्षण करनेके लिये गरुड़ और कामरूपी हायीको मारनेके लिये सिंह हैं तथा मुरनामक दैत्यको मारनेवाले हैं ॥ ६॥ जिनके चरणकमल ससार-सागरसेपार उतारनेके लिये जहाज है, ऐसे श्रीजानकीरमण रामजी आनन्दकी वर्षा करनेवाले है ॥ ७॥ जो हनुमानजीके प्रेमरूपी बावडीमें हंसके समान सदा विहार करनेवाले और निष्काम भक्तोंके लिये कामधेनुके समान परम दयालु हैं ॥ ८॥ तुलसीदास यही कहता है कि तीनों लोकोंके शिरोमणि, गुणों के वन श्रीरामचन्द्रजी ही केवल शान्तिके स्थान हैं ॥९॥