पृष्ठ:विनय पत्रिका.djvu/२५०

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२५५ विनय-पत्रिका शोककी सीमा अर्थात् महान् दुखी सुग्रीवका सकट दूर करनेवाला कौन है ? (श्रीरामजी ही हैं)॥८॥ ऐसा कौन कालका ग्रास था जो ( रावणसे निकाले हुए ) विभीषणको अपनी शरणमें रखता ? ( अथवा 'तेहि काल कहाँको ऐसा पाठ होनेपर- उस समय ऐसा कौन था जो विभीषणको अपनी शरणमें रखता) जिस रावणके राज्यमें आज भी विभीषण राजा बना बैठा है ( यह सब रघुनाथजीकी ही कृपा है ) ॥९॥ अयोध्याका रहनेवाला मूर्ख धोबी, जिसमें बुद्धिका नाम भी नहीं था, वह पामर भी वहाँ पहुँच गया जहाँ पहुँचनेमे मुनियोंका मन भी थक जाता है। (महामुनिगण जिस परम धामके सम्बन्धमे तत्त्वका विचार भी नहीं कर सकते, वह धोबी वहीं चला गया) ॥१०॥ ब्रह्माने ऐसा किसे रचा है, जो राम-नाम लेकर मुक्तिका भागी न हो ? पार्वतीवल्लभ शिवजी (जिस ) राम-नामका खयं स्मरण करते हैं और दूसरोंको उपदेश देकर उसका प्रचार करते हैं ॥ ११ ॥ अजामिलकी कथा सुनकर कौन प्रसन्न नहीं हुआ? और राम-नाम लेकर, इस कलिकालमे भी कौन भगवान् हरिके परम धाममें नहीं गया ? ॥ १२॥ राम-नामकी महिमा ऐसी है कि वह आकके पेड़को भी कल्पवृक्ष बना सकती है । वेद और पुराण इस बातके साक्षी हैं, (इसपर भी विश्वास न हो, तो) तुलसीकी ओर देखो । भाव यह है कि मैं क्या था और अब राम-नामके प्रभावसे कैसा राम-भक्त होगया हूँ॥१३॥ [१५३] मेरे रावरियै गति है रघुपति वलि जाउँ । निलजनीच निरधन निरगुन कह,जगदूसरोन ठाकुर ठाउँ॥१॥