पृष्ठ:विनय पत्रिका.djvu/३९५

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४०० विनय-पत्रिका इसीका स्मरण करना चाहिये । यही सर्वोत्तम यज्ञ है ॥२॥ आपका नाम सभी सांसारिक स्वार्थोंका साधनेवाला एवं परमार्थ (मोक्ष) का प्रदान करनेवाला है। श्रीराम-नामके समान हित करनेवाला और कोई भी नहीं है। यह वात तुलसीने खभावसे ही कही है, अतएव सचमुच ही इसपर सही पडेगी। जानकीरमण श्रीरामका नाम चित्तका भी चित् है ॥ ३ ॥ [२५५] राम ! रावरो नाम साधु-सुरतरु है। सुमिरे त्रिविध घामा हरत, पूरत काम, . सकल सुकृत सरलिजको सरु है ॥१॥ लाभहूको लाभ, सुखहूको सुख, सरबस, पतित-पावन, डरहूको डर है। नीचेहूको, ऊँचेहूको, रंकहूको, रावहूको सुलभ, सुखद आपनो-लो धरु है ॥ २॥ वेद हू, पुरान हू, पुरारि हू पुकारि कह्यो, नाम-प्रेम चारिफलहूको फरु है। ऐसे राम-नाम सो न प्रीति, न प्रतीति मन, मेरे जान, जानिवो सोई नर खरु है॥३॥ नाम-सो न मातु-पितु,, मीत-हित, वंधु-गुरु, साहिव सुधी सुसील सुधाकर है। ____ *गीतामें तो श्रीभगवान्ने जप यज्ञको अपना खरूप ही बतलाया है-यज्ञाना जपयज्ञोऽस्मि । (१० । २५) घाम-धर्म-ताप । अनेक प्रतियोंमें घाम पाठ है। परन्तु धामका अर्थ केवल ज्योति है, ताप' कदापि नहीं । पाठान्तरकी तरह भी धाम' स्वीकार्य नहीं है। -