पृष्ठ:विनय पत्रिका.djvu/४१६

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५२१ विनय-पत्रिका करके आपके द्वारपर पड़ गया हूँ, जबतक आप यह न कहेंगे कि 'तू मेरा है। तबतक मैं यहाँसे जीवनभर नहीं उलूंगा, यह मै आपकी शपथ खाकर कह चुका हूँ॥१॥ (यह न समझियेगा कि पुलिसके धक्के खाकर मैं उठ जाऊँगा ) यमदूत मुझे धक्के मार-मारकर थक गये, मुझे जबरदस्ती नरकके द्वारसे हटाना चाहा, पर मैं वहाँसे उनके हटाये हटा ही नहीं ( इतने अधिक पाप किये कि अनेक जीवन नरकमें ही बीते) । संसारमें बार-बार जन्म लेकर (माताके) पेटकी असह्य पीडाको सहा, तब कहीं नरकका निरादर कर वहाँसे निकला हूँ॥२॥ जिस चीजके लिये मचल गया हूँ और अड़ बैठा हूँ उसे लेकर ही छोडूंगा, क्योंकि आप दयाल हैं, ( मेरा अड़ना देखकर अन्तमे) आपको वह चीज देनी ही पड़ेगी। मैं आपकी बलैया लेता हूँ (जब देनी ही है, तब तुरंत दे डालिये) देर न कीजिये, क्योंकि मैं ग्लानिके मारे गला जाता हूँ। ( लोग कहेंगे कि ऐसे दयालु खामीके द्वारपर धरना दिये इतने दिन बीत गये, इसलिये तुरंत इतना कह दीजिये कि 'तुलसी मेरा है।' बस, इतना सुनते ही मैं धरना त्याग दूंगा)॥३॥ मैं अपराधोंसे भरा हूँ, इस कारणसे यदि आपको सबके सामने प्रकटमें कहते संकोच होता है तो कृपाकर मनमे ही तुलसीको अपना लीजिये, क्योंकि मैं कलिको देखकर बहुत घबरा गया हूँ॥१॥ [२६८] तुम अपनायो तब जानिहौं, जब मन फिरि परिहै। जेहि सुभाव बिषयनि लग्यो, तेहि सहज नाथ सो नेह अडि छल करिहै ॥१॥