पृष्ठ:विनय पत्रिका.djvu/४४१

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विनय-पत्रिका भीमने हनूमान्जीसे निवेदन किया कि आप मुझे उस रूपका दर्शन दे जिस रूपसे आपने राम-रावण युद्धमें भाग लिया था । हनूमान्जीने कहा कि मेरा वह रूप अत्यन्त ही विकराल है, उसे देखकर तुम डर जाओगे । परन्तु जब गर्वके साथ भीमने बहुत आग्रह किया तो हनूमानजी तत्काल ही उस रूपमें प्रकट हो गये। भीमकी ऑखें भयके मारे बंद हो गयीं और वे थर-थर कॉपने लगे। हनूमान्जीकी महिमा देखकर उनका गर्व दूर हो गया और वे उनके चरणोंमें गिर पडे । महाभारतके युद्धमें अर्जुनके रथकी ध्वजापर हनूमान्जी बैठे रहते थे। परन्तु यह बात अर्जुनको मालूम न थी। जव अर्जुन और कर्णका सामना हुआ तो अर्जुनके बाणसे कर्णका रथ बहुत दूर चला जाता था, परन्तु कर्णके वाणसे अर्जुनका रथ बहुत ही थोडा हटता था । तथापि भगवान् अर्जुनके बाणकी प्रशंसा नहीं करते और कर्णके बाणकी प्रशंसा करते थे। इससे अर्जुनके दिलमे यह गर्व होता था कि भगवान् ऐसा क्यों कहते हैं । अन्तयोमी भगवान् श्रीकृष्ण यह सब जानते थे। एक बार उन्होंने हनुमानजीस रथकी ध्वजासे अलग हो जानेका इशारा किया। उनके हटत हा जैसे कर्णका बाण छटा, अर्जुनका रथ कोसों दूर जा गिरा । इससे अर्जुनको बडा ही आश्चर्य हुआ और उन्होंने भगवान्से इसका कारण पूछा । भगवान्ने बतलाया कि हनूमान्के पराक्रमसे ही तुम्हारा रथ स्थिर रहता है, वे रथकी ध्वजापरसे हट गये हैं । यदि मै भी यहाँ न रहता तो न जाने तुम्हारा रथ कहाँ चला जाता।' भगवानकी इस बातसे अर्जुनका गर्व दूर हो गया ।