पृष्ठ:विनय पत्रिका.djvu/४५२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

५५७ परिशिष्ट वह अत्यन्त निरङ्कुश होकर राज्य करने लगा। उसके अत्याचारसे त्रिलोकी काँप उठी। कोई भी मनुष्य जप-यज्ञ, पूजा-पाठ उसके राज्यमें नहीं करने पाता था और जो कोई भगवद्भजन करता उसे वह तरह-तरहकी यन्त्रणा देता । उसका पुत्र प्रह्लाद बड़ा ही भगवद्भक्त था। उसने पिताके कितना ही कहनेपर भी अपनी टेकको नहीं छोड़ा । इसके लिये उसे भॉति-भाँतिकी पीड़ा पहुंचानेका प्रयत्न किया गया । परन्तु सब निष्फल हुआ। एक दिन राज-सभामें प्रह्लादको खम्भेमें बाँधकर हिरण्यकशिपु कहने लगा कि अपने भगवान्को दिखला, नहीं तो आज तू मेरी तलवारके घाट उतरेगा ।' प्रह्लादने कहा कि भगवान् सर्वत्र है, वह खम्भेमें है, तुममें है, मुझमें है, तुम्हारी तलवारमें और इस खम्भेमें भी है। इसपर हिरण्यकशिपुने अत्यन्त क्रोधित होकर उसे मारनेके लिये तलवार उठायी ही थी कि भक्त प्रह्लादके वचनको सत्य करने और उसे सङ्कटसे छुडानेके लिये भगवान् नरसिंह ( आधा मनुष्य और आधा सिंह ) रूपसे खम्भेको फाड़कर निकल आये और हिरण्यकशिपुको दरवाजेपर घसीटकर अपने • जघेपर रखकर अपने नखोंसे उसके कलेजेको फाड़कर मार डाला । नर-नारी- जब दुर्योधनने जुएम पाण्डवोंका सर्वख जीत लिया और अन्तमें द्रौपदीको भी दाँवपर रखकर जब पाण्डव हार गये । तब उसने दुःशासनके द्वारा द्रौपदीको भरी हुई राजसभामे बुलवाकर नंगा करनेकी आज्ञा दी। उस सभामें भीष्म, द्रोण आदि महामहिम योद्धा तथा पाँचों भाई पाण्डव भी बैठे थे, परन्तु दुर्योधनकी इस आज्ञापर किसीके मुँहसे एक भी शब्द न निकला । दुःशासन द्रौपदीके सिरके