पृष्ठ:विनय पत्रिका.djvu/४९

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विनय-पत्रिका कृत्या आदि क्रूर देवियोंका नाश करनेवाले हो। शाकिनी, डाकिनी, पूतना, प्रेत, वेताल, भूत और प्रमथ आदि भयानक जीवों- के नियन्त्रणकर्ता शासक हो ॥ ७॥ तुम्हारी जय हो। तुम वेदान्तके जाननेवाले, नाना प्रकारकी विद्याओं में विशारद, चार वेद और छः वेदाङ्ग ( शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द और ज्योतिष ) के ज्ञाता तथा शुद्ध ब्रह्मके स्वरूपका निरूपण करनेवाले हो, ज्ञान, विज्ञान और वैराग्यके पात्र हो अर्थात् तुम्हींने इनको अच्छी तरहसे जाना है। तुम समर्थ हो । इसीसे शुकदेव और नारद आदि देवर्षि सदा तुम्हारी निर्मल गुणावली गाया करते हैं ॥ ८॥ तुम्हारी जय हो। तुम काल (दिन, घडी, पल आदि), त्रिगुण ( सत्त्व, रज, तम ), कर्म (सञ्चित, प्रारब्ध, क्रियमाण ) और मायाका नाश करनेवाले हो । तुम्हारा ज्ञानरूप व्रत सदा निश्चल है तथा तुम सत्यपरायण और धर्मका आचरण करनेवाले हो । सिद्ध, देवगण और योगिराज सदा तुम्हारी सेवा किया करते हैं। हे भव-भयरूपी अन्धकारका नाश करनेवाले सूर्य ! यह दास तुलसी तुम्हारी शरण है ॥ ९॥ [२७] जयति मंगलागार, संसारभारापहर, वानराकारविग्रह पुरारी। राम-रोपानल-ज्वालमाला-मिप ध्वांतचर-सलभ-संहारकारी ॥१॥ जयति मरुदंजनामोद-मंदिर, नतग्रीव सुग्रीव-दुःखैकवंधो। यातुधानोद्धत-क्रुद्ध-कालाग्निहर,सिद्ध-सुर-सज्जनानंदसिंधो॥२॥ जयति रुद्रायणी, विश्व-वंद्याप्रणी, विश्वविख्यात-भट-चक्रवर्ती। सामगाताग्रणी, कामजेताग्रणी, रामहित) रामभक्तानुवर्ती ॥३॥ जयति संग्रामजय, रामसंदेसहर कौशला-कुशल-कल्याणभापी ।