पृष्ठ:विनय पत्रिका.djvu/५५

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विनय-पत्रिका आनन्दमयी मूर्तिका स्मरण करते ही सारे सकट और शोक मिट जाते हैं ॥ २॥ सब प्रकारके कल्याणोंकी खानि श्रीहनुमान्जीको -कृपा-दृष्टि जिसपर है, हे तुलसीदास ! उसपर पार्वती, शकर, लक्ष्मण, श्रीराम और जानकीजी सदा कृपा किया करती हैं ॥ ३॥ राग गौरी [३१] ताकही तमकि ताकी ओर को। राजाको, है सब भाँति भरोसो कपि केसरी किसोरको ॥१॥ जन-रंजन अरिगन-गंजन मुख-भंजन खल घरजोरको। बेद-पुरान-प्रगट पुरुषारथ सकल सुभट-सिरमोर को ॥२॥ उथपे-थपन, थपे उथपन पन, विवुधवृंद बँदिछोर को । जलधि लाँघि दहि लंक प्रबल वल दलन निशाचर घोरको ॥३॥ जाको वालविनोद समुझि जिय डरत दिवाकर भोरको । जाकी चिचुक-चोट चूरन किय रद-मद कुलिस कठोरको ॥४॥ 'लोकपाल अनुकूल बिलोकिबो चहत विलोचन-कोरको । सदा, अभय, जय, मुद-मंगलमय जो सेवक रनरोरको ।। ५ ।। भगत कामतरु नाम राम परिपूरन चंद चकोरको। तुलसी फल चारों करतल जस गावत गई वहोरको ॥६॥ 1. भावार्थ--जिसे सब प्रकारसे केसरी नन्दन श्रीहनुमान्जीका भरोसा है, उसकी ओर भला क्रोधभरी दृष्टि से कौन ताक सकता है ? ॥१॥ हनुमान्जीके समान भक्तोंको प्रसन्न करनेवाला, शत्रुओंका नाश करनेवाला, दुष्टोंका मुँह तोडनेवाला बड़ा बलवान् संसारमें और कौन है ? इनका पुरुषार्थ वेदों और पुराणों में प्रकट