पृष्ठ:विनय पत्रिका.djvu/६३

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विनय-पत्रिका रूपके निधान, धनु-चान पानि , तून कटि, महावीर विदित, जितैया बड़े रनके ॥ सेवक-सुख-दायक, सबल, सव लायक, गायक जानकीनाथ गुनगनके ॥ ३ ॥ भावते भरतके, सुमित्रा-सीताके दुलारे, चातक चतुर राम स्याम घनके ॥ वल्लभ उरमिलाके, सुलभ सनेहवस , धनी धन तुलसीसे निरधनके ॥ ४ ॥ भावार्थ-हे प्यारे लखनलालजी ! तुम भक्तोंका हित करनेवाले हो । स्मरण करते ही तुम संकट हर लेते हो । सब प्रकारके सुन्दर कल्याण करनेवाले, अपने प्रणको पालनेवाले और दीनोंपर कृपा करनेवाले हो ॥ १ ॥ पृथ्वीको धारण करनेवाले, ससारका भार दूर करनेवाले, बडे साहसी और शेषनागके अवतार हो । अपने प्रण और व्रतको सत्य करनेवाले, धर्मके परम प्रेमी तथा निर्मल मन, वचन और कर्मवाले हो ।॥ २॥ तुम सुन्दरताके भण्डार हो, हाथों में धनुप-बाण धारण किये और कमरमें तरकस कसे हुए हो, तुम विश्व- विख्यात महान् वीर हो और बडे बडे सग्राममे विजय प्राप्त करने वाले हो । तुम सेवकोंको सुख देनेवाले, महाबली, सब प्रकारसे योग्य और जानकीनाथ श्रीरामकी गुणावलोके गानेवाले हो ॥ ३ ॥ तुम भरतजीके प्यारे, सुमित्रा और सीताजीके दुलारे तथा रामरूपी श्याम मेघके चतुर चातक, उर्मिलाजीके पति, प्रेमसे सहजहीमें मिलनेवाले और तुलसी-सरीखे रकको रामभक्तिरूपी धन देनेमें बड़े भारी धनी हो ॥ ४॥