पृष्ठ:विनय पत्रिका.djvu/७५

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विनय-पत्रिका ७६ तथा रीछोंकी सेनाको एकत्र करके उनको व्यूहाकार सजाया और शरणागत विभीषणको मुक्ति और भक्ति देकर निहाल कर दिया ॥७॥ श्रीरामचन्द्रजीकी जय हो—जिन्होंने खेलके लिये ही समुद्रपर पुल बाँध लिया, कालके मनको भी अगम लकाको उमंगसे ही लपक लिया और कुलसहित, भाईसहित और सारी सेनासहित रावणका रणमें नाश करके तीनों लोकों और इन्द्र, कुवेर आदि लोकपालोंको निर्भय कर दिया ॥ ८॥ श्रीरामचन्द्रजीकी जय हो-जो लंका विजयकर लक्ष्मण- जी, जानकीजी और सुग्रीव, हनुमानादि मन्त्रियोंसहित पुष्पक- विमानपर चढ़कर अपनी राजधानी अयोध्याको चले । तुलसीदास गाता है कि वहाँ पहुँचकर श्रीरामके महाराजा और श्रीसीताजीके महारानी होनेपर समस्त अवधवासी परम प्रसन्न हो गये ॥ ९॥ [ ४४ ] जयति राज-राजेंद्र, राजीवलोचन, राम, ____ नाम कलि कामतरु, साम-शाली। अनय-अंभोधिकुंभज, निशाचर-निकर- तिमिर-घनघोर-खरकिरणमाली ॥१॥ जयति मुनि-देव-नरदेव दशरत्यके, देव-मुनि-चंध किय अवध-वासी। लोकनायक-कोक-शोक-संकट-शमन, भानुकुल-कमल-कानन-विकासी ॥२॥ जयति श्रृंगार-सर तामरस-दामदुति- देह, गुणगेह, विश्वोपकारी।