पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/१३४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
[ १२८ ]

अच्छे स्वप्न देखना भी सूखी सच्ची बातों पर प्राण देने से शुभ ही होता है। महान् सत्य यदि स्वप्न में भी हो तो बुरी सच्ची बातों से तो अच्छा ही है। अतः हमें, स्वप्न ही सही, देखना चाहिए।

आप जानते हैं कि संसार में भिन्न भिन्न प्रकार के मनुष्य होते हैं। संभव है कि आप सचमुच युक्ति-प्रमाणवादी हो; आप भेद और रीति को न मानते हों; आपको बुद्धिग्राह्य, ठोस और सच्ची बातें चाहिएँ और उन्हीं से आपको संतोष है। फिर संसार में प्योरिटन (Puritan) और मुसलमान भी तो हैं। वे अपने मंदिरों में किसी चित्र वा प्रतिमा को जाने देना भी नहीं चाहते। बहुत अच्छा। पर एक और भी मनुष्य है जो बड़ा चित्र- कार है। उसे चित्रकारी की बहुत अधिक आवश्यकता है― जैसे रेखाओं की, वलय की, रंगों की, फूलों की और रूपों की सुंदरता की। उसे ईश्वर के दर्शन के लिये दीपक, प्रकाश और अन्य कर्मकांड से बँधे उपाकरणों की आवश्यकता है। उसके मन में ईश्वर उन्हीं रूपों में दिखाई पड़ता है, जैसे आप उसे अपनी बुद्धि से देखते हैं। उसमें और किसी ईश्वर का भाव ही नहीं है। वह ईश्वर को पूजना और उसकी स्तुति मात्र करना जानता है। फिर संसार में दार्शनिक लोग भी हैं, जो सबसे, न्यारे हैं। वे सब का ठट्ठा करते हैं। उनका विचार है कि ये लोग कैसे मूर्ख हैं, ईश्वर को क्या समझा रहे हैं।

वे लोग एक दूसरे पर भले ही हँसें, पर संसार में सब के