पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/१४९

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बाँधे देखा करेंगे। विचार करने के लिये कुछ बात रह ही न जायगी। यही भेद, यही वैषम्य, हम लोगों के बीच में ऐक्य का यही प्रभाव है जो हमारी उन्नति का कारण हुआ है, हम सबके सारे विचारों का मूल है। यह सदा रहेगा।

फिर विश्वव्यापी धर्म के आदर्श से हमारा अभिप्राय क्या है? हमारा अभिप्राय इससे कदापि यह नहीं है कि सारे संसार के लोग एक दर्शन के अनुयायी बनें, एक ही पुराण को मानें, एक ही कर्मकांड का अनुष्ठान करें। मैं जानता हूँ कि संसार का यह चक्र, जिसमें चक्कर के भीतर चक्कर और पेंच के भीतर पेंच हैं, जो अत्यंत घुमाववाला और अद्भुत है, सदा चलता रहेगा। तो हम करें क्या? हमारा काम यही है कि हम ऐसा करें कि जिससे यह ठीक रूप से चलता जाय, घिसे नहीं, इसमें तेल पड़ता जाय। पर यह करें तो कैसे करें? यह केवल भेद की आवश्यकता के बनाए रहने से ही हो सकता है। जैसे हम अपने स्वभाव से एकता को बनाते हैं, ठीक वैसे ही भेद को भी बनाए रहना चाहिए। हमें यह सीखना चाहिए कि सत्य लाखों प्रकार से प्रकाशित किया जा सकता है और सबके सब जहाँ तक उनका संबंध है, ठीक हैं। हमें यह जानना चाहिए कि एक पदार्थ सैंकड़ों दृष्टियों से देखा जा सकता है, पर वह सब दृष्टियों से ठीक हो सकता है। उदाहरण के लिये सूर्य्य को ही ले लीजिए। मान लीजिए कि एक मनुष्य इस पृथ्वी पर से सूर्य्य को निकलते हुए देखता है। उसे वह