पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/१८

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है और दो एक की हिंसा वैज्ञानिक परीक्षा के लिये अनुचित है? उसने उत्तर दिया कि वैज्ञानिक परीक्षा के लिये चीरफाड़ आदि करना अत्यंत घृणित कर्म है; पर पशु-पक्षी तो खाने ही के लिये बनाए गए हैं। अद्वैत वा एकता में सभी प्राणी आ जाते हैं। जैसे मनुष्य की आत्मा अमर है, वैसे ही पशुपक्षियों की भी आत्माएँ हैं। भेद केवल मात्रा का है, प्रकार का नहीं। एकेंद्रिय जंतु और मैं एक ही हूँ। भेद केवल मात्रा का है; और उच्च दृष्टि से देखिए तो यह सब भेदभाव रह ही नहीं जाते। मनुष्य को घास और छोटे वृक्षों में बड़ा भेद दिखाई पड़ता है। यदि आप ऊँचे स्थान से जाकर देखें तो आप को घास और बड़े बड़े वृक्ष भी समान ही दिखाई पड़ेंगे। यही दशा उच्च आदर्श की दृष्टि से देखने की है। वहाँ क्षुद्र जंतु और उच्च मनुष्य भी समान ही हैं। ऐसा ईश्वर जो अपने एक पुत्र मनुष्य का पक्ष- पात करे और अन्य पुत्रों―पशुपक्षियों―के ऊपर निर्दयता दिखलावे, राक्षस से कहीं गया बीता है। मैं तो मरने को ऐसे ईश्वर के पूजने से सैकड़ों गुना अच्छा समझता हूँ। मुझे तो अपना सारा जीवन ऐसे ईश्वर के साथ लड़ने ही में खपाना पड़ेगा। पर यहाँ भी कोई अंतर नहीं है; और जो लोग अंतर मानते हैं, वे अनुत्तरदायी और हृदयहीन हैं, उन्हें कुछ ज्ञान नहीं है। यह कर्मण्यता वा व्यवहार को अनुपयुक्त अर्थ में काम में लाने का अच्छा उदाहरण है। संभव है कि मैं बिलकुल शाकाहारी न होऊँ, पर मैं इस आदर्श को समझता हूँ। जब मैं