पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/२५८

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करें। आधुनिक विज्ञान को इसकी झलक भर मिली है। इसका समझना उस समय सहज हो जाता है जब इसे सांख्य की दृष्टि से देखा जाय। सांख्यदर्शन के अनुसार कोई वस्तु तब तक हो नहीं सकती जब तक उसमें हमारे मन का कुछ अंश सम्मिलित न हो। मैं इस मेज को कि यह कैसी है, नहीं जान सकता। इसका संस्कार मेरी आँखों पर पड़ता है; फिर इंद्रिय से होकर मन पर; फिर मन में वेदना होती है। इसी वेदना को हम मेज बतलाते हैं। यह वैसे ही है जैसे तालाब में कंकड़ी का फेंकना। तालाब लहर को कंकड़ी पर फेंकता है और इसी से लहर का हमको ज्ञान होता है। बाहर क्या है, कोई नहीं जानता। जब हम उसे जानना चाहते हैं तब वही हो जाता है जो हम काम में लाते हैं। मैंने अपने मन से आँखों में वह सामग्री दी है। बाहर कुछ पड़ा है। उसी पर मैं अपने मन को डालता हूँ और उसी का वह रूप हो जाता है जो मुझे दिखाई पड़ता है। तो फिर सबको एक ही प्रकार से क्यों दिखाई पड़ता है? कारण यह है हम सबमें एक ही प्रकार से विश्व के मन का अंश है। जिनके मन एक प्रकार के होते हैं, उन्हें सब एक ही प्रकार के दिखाई पड़ते हैं। जिनके मन एक प्रकार के नहीं हैं, उनको वैसे न देख पड़ेंगे।


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